The Solid State:-

Table of Contents
Solid state(ठोस अवस्था):-
पदार्थ की वैसी अवस्था जिसका आकार एवं आयतन निश्चित होता है, या अणु या परमाणु एक दूसरे से मजबूत अंतरा आणविक बल द्वारा बंधे होते हैं उसे ठोस अवस्था कहते हैं।
Types of The Solid state(ठोस अवस्था के प्रकार):-
1. Crystalline solids(क्रिस्टलीय ठोस):- वैसा ठोस पदार्थ जिसमें दृढ़ता तथा निश्चित ज्यामितीय रूप मिलती है वह क्रिस्टलीय ठोस कहलाता है। यह सच्चा ठोस होता है। उदाहरण के लिए लोहा, चीनी, हीरा,… इत्यादि क्रिस्टलीय पदार्थ के उदाहरण है।
2. Amorphous solids(अक्रिस्टलीय ठोस):- वैसे ठोस जिसका बाह्य बनावट तथा अभिलक्षणीय गुण ठोस की भांति तथा व्यवहार द्रव्य की भांति होता है वह अक्रिस्टलीय ठोस कहलाता है। उदाहरण के लिए रबर, प्लास्टिक, कांच…… इत्यादि अक्रिस्टलीय ठोस के उदाहरण है।
Types of crystalline solids(क्रिस्टलीय ठोस के प्रकार):-
1. Ionic solids(आयनिक ठोस):- वैसा क्रिस्टलीय ठोस जिसके ions एक दूसरे से कुलांबिक बल के द्वारा बंधे होते हैं वह आयनिक क्रिस्टलीय ठोस कहलाता है। इसमें धनायन तथा ऋणायन समान होते हैं। उदाहरण के लिए NaCl, ZnS……….. इत्यादि आयनिक क्रिस्टलीय ठोस के उदाहरण है।
2. Molecular solids(आण्विक ठोस):- वैसा क्रिस्टल जिनके अणु, परमाणु और आयन एक दूसरे से दुर्बल वंडरवॉल बल द्वारा बंधे होते हैं वह आणविक ठोस कहलाते हैं। उदाहरण के लिए N₂, H₂O, CO₂……इत्यादि।
3. Metallic solids(धात्विक ठोस):- वैसा क्रिस्टल जिसके अणु परमाणु और आयन एक दूसरे से धात्विक बंध द्वारा बंधे होते हैं, वह धात्विक क्रिस्टलीय ठोस कहलाते हैं।
4. Covalent solids(सहसंयोजक ठोस):- वैसा क्रिस्टल जिसमें सह – संयोजी बंध उपस्थित रहता है वह सहसंयोजक क्रिस्टलीय ठोस कहलाता है। उदाहरण के लिए हीरा, ग्रेफाइट, सिलिकॉन, सहसंयोजक क्रिस्टलीय ठोस के उदाहरण है।
Bragg’s Equation(ब्रैग समीकरण):-
ब्रैग नाम के वैज्ञानिक ने सर्वप्रथम X किरण को किसी सतह पर गिरते हुए प्रदर्शित किया, X किरण किसी सतह पर गिरती है तो विवर्तित होकर परिवर्तित हो जाती है जो ब्रैग समीकरण के नाम से जाना जाता है। ब्रैग समीकरण:- nλ=2dsinθ
Crystal lattice or Space lattice:-
किसी क्रिस्टल में बिंदुओं के निश्चित ज्यामितीय व्यवस्था को space lattice कहते है।
Unit cell(इकाई कोष्ठिका):-
किसी क्रिस्टलीय ठोस में परमाणु, अणु तथा आयन के पुनरावर्तित का मूल एकक इकाई कोष्ठिका कहलाता है।
Types of unit cell(इकाई कोष्ठिका के प्रकार):-
1. Simple cubic unit cell(सरल घनीय इकाई सेल):- वैसा एकक सेल जिसमें घन के प्रत्येक किनारे पर एक-एक बिंदु उपस्थित रहता है उसे सरल घनीय एकक सेल कहते हैं। इसे संक्षेप में SCC कहा जाता है। इसका संकुलन क्षमता 52.4%(लगभग) होता है। इसमें जालक बिंदु 1 होते हैं

2. Body centred cubic unit cell(अंतः केंद्रित घनीय एकक सेल):- वैसा घनीय एकक सेल जिसमें प्रत्येक कोने पर एक-एक बिंदु के अतिरिक्त उसके केंद्र पर भी एक बिंदु उपस्थित रहता है उसे अंतः केंद्रित घनीय एकक सेल कहते हैं। इसे संक्षेप में BCC कहा जाता है। इसका संकुलन क्षमता 68.04% होता है। इसमें जालक बिंदु 2 होते हैं।

3. Face centred cubic unit cell(फलक केंद्रित घनीय एकक सेल):- वैसा एकक सेल जिसमें घन के प्रत्येक कोने पर एक-एक बिंदु के अतिरिक्त उसके फलक पर भी एक-एक बिंदु उपस्थित रहता है उसे फलक केंद्रित घनीय एकक सेल कहते हैं। इसे संक्षेप में FCC कहते हैं। इसका संकुलन क्षमता 74.09% होता है। इसमें जालक बिंदुओं की संख्या 4 होती है।
Close packing(बंद पैकिंग):-
किसी क्रिस्टलीय ठोस की वैसी व्यवस्था जिसमें दिए गए गोलों की संख्या न्यूनतम खाली जगह का अवरोध करती है उसे बंद पैकिंग कहते हैं।
Types of close packing(बंद पैकिंग के प्रकार):-
1. Hexagonal close packing:- बंद पैकिंग की वैसी व्यवस्था जिसमें एक गोला 6 गोलों के संपर्क में रहता है उसे Hexagonal close packing(HCP) कहते हैं। इसे ABAB… के रूप में भी जाना जाता है।

2. Cubicle close packing:- बंद पैकिंग की वैसी व्यवस्था जिसमें गोले की एक परत के ऊपर दूसरी परत तथा दूसरी परत के ऊपर तीसरी पर उपस्थित रहता है उसे cubicle close packing कहते हैं। इसे AAA… के रूप में जाना जाता है।
Holes(छेद):-
किसी क्रिस्टलीय ठोस की क्रमिक व्यवस्था में कुछ रिक्त स्थान मिलते हैं जिसे छेद कहते हैं।
Types of holes(छेद मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं): –
1. Tetrahedral hole:-
वैसा छेद जो चार गोलों के बीच उपस्थित रहता है वह Tetrahedral hole कहलाता है।

2. Octahedral hole:-
वैसा छेद जो तीन गोलों से घिरा होता है उसे Octahedral hole हैं।

Point defects(बिंदु दोष):- किसी क्रिस्टलीय ठोस के क्रमिक व्यवस्था का पूर्ण ना होना बिंदु दोष कहलाता है।
Stoichiometric Defects(स्टोइकोमेट्रिक दोष):-
वैसा दोष जो ionic तथा non-ionic दोनो क्रिस्टलों में पाए जाते है, उसे स्टोइकोमेट्रिक दोष कहते है।
Types of Stoichiometric Defects(स्टोइकोमेट्रिक दोष के प्रकार):-
1. Vacancy defects(रिक्तिका दोष):- किसी क्रिस्टल में कुछ जालक स्थान रिक्त होते हैं तो उसे रिक्तिका दोष कहा जाता है। यह दोष ठोस को गर्म करने पर उत्पन्न होता है।
2. Interstitial Defect(अंतरकाशी दोष):- जब कोई क्रिस्टल अपने जालक स्थान को छोड़कर अंतरकाशी स्थान प्राप्त कर लेता है तो उसे अंतरकाशी दोष कहते हैं।
3. Schottky Defects(शोट्की दोष):- किसी क्रिस्टल में वैसा दोष जिसमें सामान संख्या में धन या ऋण आयन अपना जालक स्थान छोड़कर गायब हो जाते हैं तो ऐसे दोष शोट्की दोष को कहते हैं। उदाहरण के लिए NaCl, AgBr, CsCl….इत्यादि।
4. Frenkal Defects(फ्रेंकल दोष):- आयनिक क्रिस्टल में वैसा दोष जिनमें आयन अपने जालक स्थान को छोड़कर अंतराकाशी स्थान को प्राप्त कर लेते हैं तो क्रिस्टल में होने वाले दोष को फ्रेंकल दोष कहा जाता है। उदाहरण के लिए AgCl, Agi, AgBr….. इत्यादि।
Impurity Defect(अशुद्धता दोष):-
क्रिस्टल में वैसा दोष जिसमें उपस्थित आयन में कुछ स्थान रिक्त होते हैं तो उसमें कोई बाह्य तत्व आकर उस रिक्त स्थान को भर लेता है, तो उस दोष को अशुद्धता दोष कहते है।
Electrical properties of solids(ठोस के विद्युतीय गुण):-
1. Conductor(चालक):- वैसे ठोस जिनमें से विद्युत धारा आसानी से परवाह हो जाती है उसे चालक कहते हैं। इनकी विद्युत चालकता क्रम 10² – 10⁴ ohm⁻¹m⁻¹ होता है। उदाहरण के लिए लोहा, ग्रेफाइट ….इत्यादि।
2. Non conductor(अचालक):- वैसा पदार्थ जिनसे होकर विद्युत धारा का प्रवाह नहीं होता है उसे अचालक कहते हैं। इनकी विद्युत चालकता क्रम 10⁻²⁰ – 10⁻¹⁰ ohm⁻¹m⁻¹ होता है। उदाहरण के लिए सुखी हुई लकड़ी, प्लास्टिक …..इत्यादि।
3. Semiconductor(अर्धचालक):- वैसा पदार्थ जिनमें चालक और अचालक दोनों का गुण पाया जाता है उसे अर्धचालक कहते हैं। इनकी विद्युत चालकता क्रम 10⁻⁶ – 10⁻⁴ ohm⁻¹m⁻¹ होता है। उदाहरण के लिए Ge, Si ….इत्यादि।
अर्धचालक दो प्रकार के होते हैं: –
(a). n- प्रकार के अर्धचालक: – वैसा अर्धचालक जिसमे उच्च संयोजकता वाला डोपिंग मिश्रित रहता है उसे n- प्रकार के अर्धचालक कहते हैं।
(b). P- प्रकार के अर्धचालक: – वैसा अर्धचालक जिसमें निम्न संयोजकता वाला डोपिंग मिश्रित रहता है उसे P- प्रकार के अर्धचालक कहते है।
Doping(अपमिश्रण):- किसी अर्धचालक में उपस्थित अशुद्धियां अपमिश्रण कहलाती है।
Magnetic properties of solids(ठोस के चुंबकीय गुण):-
1. Paramagnetic Substances(अनुचुंबकीय पदार्थ):- वैसा पदार्थों जो चुंबक के द्वारा दुर्बल रूप से आकर्षित होता है वह अनुचुंबकीय पदार्थ कहलाता है तथा ठोस का यह गुण अनु चुंबकत्व कहलाता है। उदाहरण के लिए O₂ Cu²⁺…….इत्यादि।
2. Diamagnetic Substances(प्रतिचुंबकीय पदार्थ):- वैसा पदार्थ जो चुंबक के द्वारा आकर्षित नहीं होता है वह प्रतिचुंबकीय पदार्थ कहलाता है इसमें युग्मित इलेक्ट्रॉन पाए जाते हैं। उदाहरण के लिए TiO₂ NaCl……. इत्यादि।
3. Ferromagnetic Substances(लौहचुम्बकीय पदार्थ):- वैसा पदार्थ जो चुंबक के संपर्क में आने पर अपना स्थाई चुंबकत्व बनाए रखता है वह लौहचुम्बकीय पदार्थ कहलाता है।
4. Anti-ferromagnetic Substances(प्रति लौहचुम्बकीय पदार्थ):- वैसा पदार्थ जो कुछ अनुचुंबकीय पदार्थों में बाह्य चुंबकीय क्षेत्र से आकर्षित होता है वह प्रति लौह चुंबकीय पदार्थ कहलाता है। उदाहरण के लिए MnO.
Super sir.
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Thank you